बाल वीर दिवस के मौके पर हल्द्वानी के गुरुद्वारे में पहुंचे मुख्यमंत्री ने बच्चों को किया सम्मानित

हल्द्वानी। गुरुवार को हल्द्वानी के गोलापार स्थित गुरूद्वारा सिंह सभा संत बाबा जगत सिंह जी में वीर बाल दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रतिभाग किया। इस मौके पर मुख्यमंत्री ने सिख फेडरेशन द्वारा आयोजित “मेरी सिखी मेरी शान” प्रतियोगिता में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले 10 बच्चों को पुरस्कार देकर सम्मानित किया। वही कार्यक्रम में मौजूद गुरुद्वारा प्रबंधन और बच्चों ने मुख्यमंत्री के साथ फोटो भी खिंचवाए।

मुख्यमंत्री ने अपने संबोधन में कार्यक्रम में मौजूद सभी माता-पिता और शिक्षकों से आग्रह किया कि वे अपने बच्चों को हमारे नायकों के बारे में जरूर बताएं और उनकी वीर गाथाओं को सुनाए जिससे आने वाली पीढ़ियां अपनी संस्कृति, धर्म और परंपराओं पर गर्व का अनुभव करें और उनके आदर्शों को अपने जीवन में अपनाएं। कार्यक्रम में गुरुद्वारा प्रबंधक राजेंद्र सिंह, संरक्षक बलजीत सिंह, राजेंद्र सिंह, गुरु वेद सिंह खजांची, जगतार सिंह सेक्रेटरी, इंद्रजीत सिंह, गुरजीत सिंह, गुरमीत सिंह, जगविंदर सिंह, भाजपा प्रदेश महामंत्री राजेंद्र बिष्ट, गोलापार भाजपा मंडल अध्यक्ष मुकेश बेलवाल आदि मौजूद रहे।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने वीर बाल दिवस के अवसर पर दशमेश पिता श्री गुरु गोबिंद सिंह जी और उनके चारों साहिबजादों बाबा अजीत सिंह, बाबा जुझार सिंह, बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह के अमर बलिदान को नमन करते हुए कहा कि वीर बाल दिवस इन्हीं महानायकों को स्मरण करने का अवसर है। जिन्होंने भारत की संस्कृति, धर्म और स्वाभिमान की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। उन्होंने कहा गुरु गोविंद सिंह साहब के चारों साहिबजादों का बलिदान भारतीय इतिहास के साथ ही संपूर्ण विश्व इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय के रूप में हमेशा याद किया जाएगा।

बता दें वीर साहिबजादों बाबा अजीत सिंह जी और बाबा जुझार सिंह जी ने मात्र 17 वर्ष और 15 वर्ष की आयु में चमकौर के युद्ध में अद्वितीय शौर्य और साहस का परिचय देते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। वहीं बाबा जोरावर सिंह जी और बाबा फतेह सिंह जी ने केवल 9 और 6 वर्ष की आयु में सरहिंद के नवाब वजीर खान द्वारा दी गई अमानवीय यातनाओं का सामना किया और धर्म की रक्षा के अपने प्रण पर अडिग रहे। 26 दिसंबर 1705 को उन्हें जिंदा दीवार में चिनवा दिया गया, लेकिन उन्होंने अपनी धार्मिक आस्था से समझौता करने के बजाय अपने प्राणों की आहुति दे दी।

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