आजादी के जश्न पर शहादत का गम, घर पहुंचा शहीद कैप्टन दीपक सिंह का पार्थिव शरीर

देहरादून। जम्मू कश्मीर के डोडा में मंगलवार को आतंकवादियों के सर्चिंग ऑपरेशन के दौरान शहीद हुए कैप्टन दीपक सिंह का पार्थिव शरीर आजादी की 77वीं वर्षगांठ पर देहरादून पहुंचा जिसने आजादी के जश्न को थोड़ा फीका जरूर कर दिया। देहरादून के जॉली ग्रांट एयरपोर्ट पर कैप्टन दीपक सिंह के पार्थिव शरीर को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह ने श्रद्धांजलि दी और उनके पिता का ढांढस बंधाया।

बचपन से ही सेवा में जाने का सपना देखते थे शहीद कैप्टन दीपक सिंह

शहीद कैप्टन दीपक सिंह के पिता महेश सिंह पुलिस में थे और अपनी ड्यूटी के दौरान वह पुलिस लाइन में रहा करते थे। पिता महेश सिंह कहते हैं कि शुरुआती दौर से ही उनके बेटे ने वर्दी को बहुत करीब से देखा है और शायद इसीलिए उसके अंदर एक अलग ही जज्बा था जो उसे सेना में जाने को प्रेरित करता था। क्योंकि उसने इंटर पास करने के बाद कई फॉर्म भर दो टेस्ट भी निकाले लेकिन उसने आर्मी को चुना। महेश सिंह बताते हैं कि दीपक शुरू से ही जम्मू कश्मीर में पोस्टिंग लेना चाहते थे जिसके लिए उसकी दोनों बहने मना भी करती थी लेकिन असम में पोस्टिंग के समय दीपक की पोस्टिंग जम्मू कश्मीर में हुई और वहां तैनाती लेने के बाद उसने घर बताया कि वह जम्मू कश्मीर में शिफ्ट हो गया है।

जब दीपक ने पिता से कहा कि “बंदूक में गोली खत्म हुई तो खुखरी से दुश्मनों को मार दूंगा”

दरअसल जब छुट्टियों में शहीद कैप्टन दीपक सिंह अपने घर आए तो पिता के साथ वह बाजार गए और वहां से उन्होंने एक खुखरी खरीदी। दीपक के पिता बताते हैं कि जब उनके बेटे ने खुखरी खरीदी तो उसने उन्हें बताया कि वह इसे इसलिए खरीद रहे हैं क्योंकि जब सीमा पर रक्षा करते हुए बंदूक की गोली खत्म हो जाएगी तो दुश्मनों को खुखरी से मार दूंगा। दीपक के पिता का कहना है कि घर पर जब भी दीपक बात करता था तो उसके अंदर से सिर्फ देशभक्ति की है आवाज निकलती थी।

पिता को बेटे की शहादत पर गर्व लेकिन पिता से पहले जाने का मलाल

शहीद कैप्टन दीपक सिंह के पिता महेश सिंह को जब से बेटे के शहीद होने की खबर मिली है तब से उनकी आंख से मुश्किल ही आंसू निकल रहे हैं। महेश सिंह का कहना है कि उन्हें अपने बेटे की शहादत पर गर्व है लेकिन जैसे-जैसे लोग उनसे मिलने आ रहे हैं तब उन्हें दुख जरूर होता है और उनकी आंख में भी आंसू भर आते हैं। पिता महेश सिंह कहते हैं कि उन्हें बेटे के जाने का गम तो नही है लेकीन उन्हें केवल इस बात का दुख है कि उनका बेटा उनसे पहले चला गया।

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