ब्यूरो रिपोर्ट। 2018 में शुरू हुई केंद्र सरकार की इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका मिला है गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बांड को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए इस योजना को असंवैधानिक करार दिया है साथ ही योजना से जुड़े बॉन्ड की बिक्री को भी तत्काल प्रभाव से रोक दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में बॉन्ड की बिक्री करने वाले एसबीआई बैंक को 3 सप्ताह के भीतर इस योजना से जुड़ी पूरी जानकारी अपनी सार्वजनिक करने के भी आदेश दिए हैं।
दरअसल केंद्र सरकार द्वारा 2018 में शुरू की गई इस योजना को चुनौती देने वाली याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई थी जिनकी सुनवाई सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ कर रही थी। इसी सिलसिले में केंद्र सरकार की तरफ से 29 अक्टूबर 2023 को एक हलफनामा सौंपा गया था। जिसमें अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने शीर्ष अदालत को बताया था कि इलेक्टोरल बॉन्ड के स्रोतों को जानने का आम नागरिकों को सामान्य अधिकार नहीं है। यही नहीं केंद्र सरकार ने जब स्कीम को लागू किया था तब ये दलील दी गई थी कि राजनीतिक दलों के पास आने वाले चंदे में पारदर्शिता लाने के लिए सरकार ने इस स्कीम को लांच किया है। हालांकि सरकार की सभी दलीलों पर सुप्रीम कोर्ट ने कदा रख अपनाते हुए इस योजना को तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दिया।
क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड योजना?
इलेक्टोरल बांड योजना के तहत आरबीआई द्वारा एक हजार, दस हजार, एक लाख और एक करोड़ के इलेक्टरल बॉन्ड जारी किए गए थे। जिस राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने के लिए खरीदा जाता था। इन बॉन्ड को देश का कोई भी आम नागरिक राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने के लिए एसबीआई बैंक की कुछ चुनिंदा शाखाओं में जाकर खरीद सकता था। चंदा पाने वाली राजनीतिक पार्टियां इलेक्टोरल बांड का भुगतान करवाती थी जिस पर पार्टी को कोई भी ब्याज नहीं दिया जाता। जबकि इलेक्टोरल बांड से किस पार्टी को कितना चंदा मिला है इसकी जानकारी के लिए आम नागरिकों को सूचना का अधिकार के तहत जानकारी भी नहीं दी जाती थी।
इलेक्टोरल बांड की खामियां
1- योजना में दानदाताओं और प्राप्तकर्ताओं दोनों की पहचान गुमनाम होती थी जिसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं होती थी।
2 – दानदाता की डिटेल केवल सरकार की पहुंच में थी जिसका सत्ता में मौजूद सरकार लाभ उठाकर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव बाधित कर सकती है।
3 – काले धन के ज्यादा उपयोग का खतरा।
4 – कॉर्पोरेट संस्थाओं के लिए पारदर्शिता और दानदाता द्वारा दी जाने वाली सीमा में कई खामियां।
सुप्रीम कोर्ट ने ये दिया फैसला
1- चुनावी बांड की बिक्री तत्काल बंद करें एसबीआई।
2- 2019 से अब तक योजना से जुड़ी सारी जानकारी अपनी वेबसाइट पर 3 सप्ताह के भीतर करनी होगी सार्वजनिक।
3- वोटर को यह जानने का पूरा अधिकार की चुनावी बांड के लिए पैसा कहां से आया कितना आया और किस पार्टी के लिए आया।
4- इस योजना की जानकारी सूचना के अधिकार के तहत ना देना सूचना अधिकार का है उल्लंघन।
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को इस योजना के लिए जो टिप्पणी की है उसे केंद्र सरकार को बड़ा झटका लगा है। जिस पर सत्ताधारी दल भाजपा से जुड़े कई बड़े केंद्रीय नेता सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इलेक्टोरल बांड योजना को चुनावो में राजनीतिक पार्टियों के पास आने वाले चंदे में पारदर्शिता लाने वाली योजना बता रहे हैं।