बिलों को बिना चर्चा पास करने के लिए किया गया सांसदों का निलंबन?

देहरादून। देश की संसद में चल रहे लोकसभा और राज्यसभा सत्र में पिछले दिनों जिस तरह सांसदों के निलंबन के साथ सदन में कई महत्वपूर्ण बिलों को मोदी सरकार ने पास कराया है उसे देखकर तो लगता है कि मोदी सरकार कांग्रेस मुक्त भारत का कैंपेन अब विपक्ष मुक्त सांसद में तब्दील हो गया है। मौजूदा संसद सत्र में अब तक 143 सांसदों का लोकसभा और राज्यसभा से निलंबन किया गया है जिसमे सबसे ज्यादा सांसद कांग्रेस के हैं। लोकसभा और राज्यसभा में केवल विपक्षी सांसदों के निलंबन के खिलाफ कांग्रेस ने शुक्रवार को देश भर में मोदी सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया है। कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि मोदी सरकार संसद में किसी भी तरह की चर्चा से बचना चाहती है इसीलिए सरकार के दबाव में सांसदों के निलंबन किए जा रहे हैं वैसे आजादी के बाद से अब तक यह पहला मौका है जब इतनी बड़ी संख्या में सरकार ने सांसदों के निलंबन किए हैं वह भी केवल विपक्षी दलों के सांसद। यही नहीं इतने हंगामा के बाद भी जिस तरह मोदी सरकार सदन के भीतर बिलों को पास करवा रही है उसे लगता है कि विपक्ष के आरोप में सच्चाई जरूर है।

मनमोहन सिंह सरकार से लेकर राजीव गांधी और इंदिरा गांधी सरकार में भी हुए थे निलंबन

वैसे ऐसा बिल्कुल नहीं है कि मोदी सरकार से पहले किसी भी सरकार ने सांसदों के निलंबन नहीं किए हैं पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भी सांसदों के निलंबन हुए हैं जिनमें सबसे ज्यादा 63 निलंबन राजीव गांधी के कार्यकाल में हुए हैं जबकि इंदिरा गांधी के कार्यकाल में 3 और मनमोहन सिंह के कार्यकाल में साल 2004 से साल 2014 के बीच 59 सांसदों के निलंबन किए गए हैं लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान जिन 59 सांसदों के निलंबन हुए थे उनमें कांग्रेस सांसद भी शामिल थे। जबकि मोदी सरकार के 10 साल के कार्यकाल में केवल विपक्ष के सांसदों को ही निलंबित किया जा रहा है जिसकी शुरुआत मोदी सरकार के सत्ता में आने के 1 साल बाद हुई साल 2015 में सबसे पहले सांसदों को निलंबित किया गया था इसके बाद साल 2019 और 2023 के मौजूदा सत्र में कुल मिलाकर 10 सालों में रिकार्ड 255 सांसदों को निलंबित किया जा चुका है जिम एक भी भाजपाई सांसद नहीं है।

तो क्या लोकसभा और राज्यसभा में पेश होने वाले बिलों पर जरूरी चर्चा से भाग रही है भाजपा?

जब से लोकसभा और राज्यसभा के सांसदों को निलंबित किया गया है तभी से संसद के बाहर सभी निलंबित सांसद धरना प्रदर्शन कर रहे हैं आमतौर पर देखा गया है कि किसी भी सरकार के कार्यकाल में जब सांसदों के निलंबन किए गए हैं तो संसद की कार्रवाई भी बाधित हुई है लेकिन मौजूदा सत्र में ऐसा देखने को नहीं मिला सांसदों के निलंबन के बावजूद सरकार ने कई महत्वपूर्ण बिलो को लोकसभा और राज्यसभा में पास कराया है जिनमें सीआरपीसी जैसे महत्वपूर्ण बिल भी शामिल हैं। लेकिन जिस जनता के लिए राज्य सरकार केंद्र सरकार इन बिलों को संशोधित करने का काम कर रही है उसी के विपक्ष में बैठे जनप्रतिनिधि संसद के बाहर हैं तो क्या इस रवैया से यह माना जाए कि वाकई सरकार चर्चा के मूड में नहीं है। जो शायद जनता के साथ भी बेमानी है।

लोकतांत्रिक आघात vs मिमिक्री विवाद

देश में किसी भी सरकार से बड़ा कद राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का होता है ऐसे में दोनों ही पदों की अपनी गरिमा होती है लेकिन अपने निलंबन के खिलाफ संसद के बाहर प्रदर्शन कर रहे विपक्षी दलों के सांसदों में से एक टीएमसी सांसद ने जिस तरह उपराष्ट्रपति की मिमिक्री की है उसे किसी भी तरह सही नहीं ठहराया जा सकता हालांकि यह बात और है कि पिछले कुछ सालों में लोकसभा हो या राज्यसभा दोनों ही सदनों में कई बार पूर्व नेताओं की भी मिमिक्री की गई है लेकिन पहले किसी भी तरह की कोई कार्रवाई नहीं की गई थी। वैसे जिस तरह इस मिमिक्री विवाद को सही नहीं कराया जा सकता इस तरह एक के बाद एक केवल विपक्ष के ही सांसदों का निलंबन भी भारतीय लोकतंत्र में सही नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि विपक्षी दलों के सांसदों के साथ-साथ सत्ता पक्ष भाजपा के भी सांसद कई बार लोकसभा और राज्यसभा में अमर्यादित बयान बाजी कर चुके हैं लेकिन ना ही उनका कोई निलंबन हुआ और ना ही उन पर किसी भी तरह की कोई कार्रवाई की गई ऐसे में केवल विपक्षी सांसदों को निलंबित करने के पीछे कुछ और ही कारण हो सकते हैं।

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