क्या पूरा होगा 3 लाख 54 हजार करोड़ का सपना?

8 और 9 दिसंबर को राजधानी देहरादून के एफआरआई में राज्य सरकार ने डेस्टिनेशन इन्वेस्टर समिट 2023 का आयोजन किया जिसमें देश और दुनिया के कई बड़े उद्योगपतियों ने उत्तराखंड में निवेश करने के लिए अपनी रुचि दिखाई। इन्वेस्टर समिट के पहले दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समिट की शुरुआत की जबकि दूसरे दिन केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने समिट का समापन किया। राज्य सरकार की माने तो दुनिया भर के उद्योगपतियों के साथ राज्य सरकार ने 3 लाख 54 हजार करोड़ के एमओयू साइन किए। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या राज्य सरकार ने जो सपना उत्तराखंड के लोगों को दिखाया है वह पूरा हो पाएगा या फिर इस इन्वेस्टर सबमिट का हाल भी 2018 में हुए इन्वेस्टर समेत की तरह ही होगा।

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने साल 2018 में मुख्यमंत्री रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत के पद चिन्हों पर चलते हुए देहरादून में एक बार फिर डेस्टिनेशन उत्तराखंड इन्वेस्टर समिट 2023 का आयोजन कराया। प्रदेश में एक बार फिर बड़े निवेश आने की आहट सुनाई दी लेकिन निवेश के सपने के साथ एक डर भी है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के इन्वेस्टर समिट का हाल 2018 में हुए इन्वेस्टर समिट की तरह तो नहीं होगा क्योंकि साल 2018 में हुए इन्वेस्टर समेत के आयोजन के बाद प्रदेश सरकार ने एक सपना उत्तराखंड की जनता को दिखाया था कि राज्य में बड़ा निवेश आएगा और रोजगार के अवसर के साथ-साथ प्रदेश की आर्थिकी मजबूत होगी लेकिन करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी उत्तराखंड में कोई भी निवेश नहीं आया जिसकी टीस आज भी तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को है।

8 और 9 दिसंबर को राजधानी देहरादून के भारतीय वन अनुसंधान में करोड़ों रुपए लगाकर समिट में आए मेहमानों के रुकने, खाने-पीने और समिट के लिए लगाए गए पंडाल में करोड़ों रुपए खर्च कर दिए गए वो भी ऐसे समय जब उत्तराखंड पर कर्ज का बोझ बढ़ता ही जा रहा है ऐसे में 3 लाख 54 हजार करोड़ का जो आंकड़ा सरकार सबके सामने पेश कर रही है अगर उसके अनुरूप निवेश नहीं आता तो जो खर्च आयोजन पर हुआ है उसकी भरपाई कैसे हो पाएगी बेहतर है कि सरकार को इस बारे में भी पहले ही मंथन कर लेना चाहिए क्योंकि सरकार को किसी भी योजना के निर्माण से लेकर उसके सरकार होने तक का फूल प्रूफ प्लान बनाने की जिम्मेदारी अधिकारियों पर होती है ऐसे में अगर 3 लाख 54 हजार करोड़ के आंकड़े में से 50 फ़ीसदी निवेश राज्य में नहीं आता है तो उन अधिकारियों पर भी जिम्मेदारी होनी चाहिए जो सरकार को सलाह देते हैं।

5 साल पहले हुए इन्वेस्टर समिट में जो भी अनुबंध बड़ी कंपनियों के साथ किए गए थे वह सभी कागजों में ही सिमट कर रह गए थे। यही कारण है कि 5 साल बाद होने वाले इन्वेस्टर समिट को लेकर विपक्ष सरकार पर लगातार हमलावर रहा है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पर कांग्रेस ने सीधा आरोप लगाते हुए कहा कि जब पिछले इन्वेस्टर समिट के अनुबंध अभी तक निवेश में नहीं बदल सके हैं तो नए इन्वेस्टर समिट का आयोजन आखिर क्यों कराया जा रहा है। वैसे कांग्रेस का आरोप इसलिए भी जायज है क्योंकि उत्तराखंड बनने के बाद राज्य में जो एकमात्र बड़ा निवेश आया वो कांग्रेस की सरकार में मुख्यमंत्री रहे स्वर्गीय नारायण दत्त तिवारी के कार्यकाल में आया था। बड़ी बात यह रही कि बिना किसी इन्वेस्टर समिट के राज्य में बड़ा निवेश आया और हरिद्वार, रुद्रपुर, पंतनगर जैसी जगह पर सिडकुल स्थापित किया गया जिसने राज्य में रोजगार के नए रास्ते बनाए और आज भी लोगों को रोजगार मुहैया करा रहा है।

राज्य के मुखिया होने के नाते मुख्यमंत्री धामी के कंधों पर राज्य राज्य के विकास का जिम्मा है लेकिन इस विकास के साथ-साथ यह भी ध्यान में रखना जरूरी है कि राज्य पर जो बोझ कर्ज का बढ़ता ही जा रहा है उसे ध्यान में रखते हुए कम खर्च करके निवेश लाया जाए जिससे दो राज्य की आर्थिकी मजबूत होने के साथ-साथ रोजगार आएंगे और फिजूल खर्ची भी ज्यादा नहीं होगी जिससे कर्ज से भी बचा जा सकता है।

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